TCS छंटनी का रियल एस्टेट पर कितना असर? बेंगलुरु-हैदराबाद में क्या घटेंगे फ्लैट के दाम?

TCS छंटनी का रियल एस्टेट पर कितना असर? बेंगलुरु-हैदराबाद में क्या घटेंगे फ्लैट के दाम?



टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) और अन्य प्रमुख आईटी कंपनियों में संभावित छंटनी की खबरों ने रियल एस्टेट सेक्टर, खासकर बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे टेक-हब शहरों में हलचल मचा दी है। इन शहरों में आईटी प्रोफेशनल्स की मजबूत मांग ने लंबे समय से प्रॉपर्टी बाजार को सहारा दिया है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या आईटी सेक्टर में होने वाली संभावित छंटनी का असर रियल एस्टेट की बिक्री पर भी पड़ेगा?


इक्विरस कैपिटल का आकलन: असर रहेगा सीमित

Equiverus Capital के मैनेजिंग डायरेक्टर विजय अग्रवाल का मानना है कि इस छंटनी का रियल एस्टेट पर असर सीमित रहेगा। CNBCTV-18 के एक कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि Global Capability Centers(GCCs) में इन दिनों जोरदार हायरिंग चल रही है। अग्रवाल के अनुसार, "अगर TCS या दूसरी आईटी कंपनियां छंटनी करती भी हैं, तो GCCs उस प्रभाव को समायोजित कर सकते हैं।" हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि स्थिति को पूरी तरह समझने में अभी दो से तीन तिमाहियों का समय लग सकता है।


बेंगलुरु: हाउसिंग डिमांड पर पड़ सकता है असर

बेंगलुरु में घर खरीदने वालों में लगभग 40% आईटी प्रोफेशनल्स होते हैं। ऐसे में, अगर नौकरी जाने का डर बढ़ता है, तो निश्चित रूप से वहां की हाउसिंग डिमांड पर असर पड़ सकता है। फिर भी, अग्रवाल के मुताबिक, बड़े या लिस्टेड डेवलपर्स की बिक्री में फिलहाल कोई बड़ी गिरावट नहीं दिखी है। बेंगलुरु में औसतन फ्लैट की कीमतें ₹2 करोड़ के आसपास बनी हुई हैं, और जब तक बड़े पैमाने पर छंटनी नहीं होती, तब तक रियल एस्टेट सेक्टर स्थिर बना रह सकता है।


हैदराबाद: नया हॉटस्पॉट बनकर उभरा

विजय अग्रवाल ने हैदराबाद को GCCs के लिए एक आकर्षक बाजार के रूप में बताया। उन्होंने कहा, "हैदराबाद किराए और मकान की लागत के हिसाब से बहुत प्रतिस्पर्धी है। कंपनियां अब लोकेशन Diversification के तहत बेंगलुरु और हैदराबाद के बीच विकल्प देख रही हैं।"


डेवलपर्स के लिए राहत: मजबूत प्री-सेल्स और ऑफिस स्पेस की मांग

लोढ़ा डेवलपर्स, DLF, ओबेरॉय रियल्टी और प्रेस्टिज एस्टेट्स जैसे रियल एस्टेट डेवलपर्स लगातार मजबूत प्री-सेल्स आंकड़े पेश कर रहे हैं। अग्रवाल ने बताया कि अप्रैल-जून 2025 तिमाही में देखी गई मामूली गिरावट अस्थायी थी, और इसके पीछे मुख्य वजह भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं थीं, न कि घरेलू मांग की कमजोरी।


GCCs से केवल रेजिडेंशियल मार्केट ही नहीं, बल्कि ऑफिस स्पेस की मांग को भी समर्थन मिल रहा है। अग्रवाल ने बताया, "कुल लीजिंग का लगभग 20 से 30% हिस्सा GCCs ही ले रहे हैं।" उन्होंने कर्मचारियों की बढ़ती संख्या को प्रॉपर्टी मार्केट के लिए एक सकारात्मक ट्रेंड बताया।


उन्होंने यह भी कहा कि इस बदलाव से प्रेस्टीज एस्टेट्स, ब्रिगेड एंटरप्राइजेज और शोभा जैसे डेवलपर्स को सबसे अधिक फायदा मिल सकता है, खासकर दक्षिण भारत के बाजार में, जो ₹1 से ₹2 करोड़ के रेंज वाले फ्लैट्स पर ध्यान केंद्रित करते हैं।


लोढ़ा डेवलपर्स का सकारात्मक नजरिया

लोढ़ा डेवलपर्स के फाइनेंस एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुशील कुमार मोदी ने भी हाल ही में कहा कि बेंगलुरु जैसे शहरों में मांग अब भी मजबूत बनी हुई है। उन्होंने कहा, "इस इंडस्ट्री के कई सेगमेंट अब भी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।" मोदी ने इस बात पर भी जोर दिया कि रियल एस्टेट न केवल खुद एक बड़ा सेक्टर है, बल्कि यह स्टील, सीमेंट, टाइल्स और केबल जैसी कई अन्य इंडस्ट्रीज को भी सहारा देता है।

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