Policyholder और nominee दोनों की मौत हो जाए तो बीमा का पैसा किसे मिलेगा? IRDAI का नियम और कानूनी उत्तराधिकार का पेचीदा सवाल

Policyholder और nominee दोनों की मौत हो जाए तो बीमा का पैसा किसे मिलेगा? IRDAI का नियम और कानूनी उत्तराधिकार का पेचीदा सवाल

लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते समय nominee का नाम देना एक अनिवार्य प्रक्रिया है। आमतौर पर, व्यक्ति अपनी पत्नी को नॉमिनी बनाता है, ताकि उसकी मृत्यु के बाद बीमा का पैसा पत्नी को मिल सके। यह व्यवस्था दशकों से चली आ रही है और ज्यादातर मामलों में सुचारु रूप से काम करती है। लेकिन, एक जटिल स्थिति तब पैदा होती है जब किसी दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में पॉलिसीहोल्डर और नॉमिनी दोनों की एक साथ मृत्यु हो जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि बीमा का पैसा आखिर किसे मिलेगा?

हाल ही में, अहमदाबाद में 12 जून को लंदन जा रहा विमान हादसे का शिकार हो गया, जिसमें कई परिवार एक साथ काल का ग्रास बन गए। इन हृदयविदारक घटनाओं में कुछ ऐसे मामले भी थे, जहाँ पॉलिसीहोल्डर और उनके नॉमिनी दोनों की मृत्यु हो गई। ऐसे में, बीमा क्लेम को लेकर एक बड़ा कानूनी और भावनात्मक सवाल खड़ा हो गया है।

IRDAI का नियम और कानूनी उत्तराधिकारी का दावा:

insurance regulatory एंड डेवलपमेंट Authority of India(IRDAI) ने ऐसी परिस्थितियों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश दिए हैं। बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में, नॉमिनी के कानूनी उत्तराधिकारी (Legal Heir) को क्लेम का हकदार माना जाता है। हालांकि, इंश्योरेंस कंपनी ऐसे मामलों में पॉलिसी के नियम और शर्तों के आधार पर अंतिम फैसला लेती है, लेकिन सामान्य तौर पर कानूनी उत्तराधिकारी को ही बीमा के पैसे का हकदार माना जाता है।


कानूनी वारिस insurance company के पास बीमा के पैसे के लिए क्लेम कर सकता है। insurance company दस्तावेजों की गहन जांच और दावा करने वाले व्यक्ति और नॉमिनी के बीच के संबंध के सबूतों की पुष्टि करने के बाद ही पैसे का भुगतान करती है।


हिंदू उत्तराधिकार कानून: क्लास वन और क्लास टू वारिस:

हिंदू उत्तराधिकार कानून में कानूनी वारिसों को दो प्रमुख वर्गों में बांटा गया है, जो ऐसी स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:


क्लास वन लीगल वारिस (Class One Legal Heirs): इस वर्ग में वे व्यक्ति शामिल हैं जिनकी कानूनी रूप से सबसे पहले बीमा के पैसे पर दावेदारी होती है। इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं:


पत्नी (या पति, यदि पॉलिसीहोल्डर पत्नी थी)

बेटा

बेटी

मां

विशेष रूप से, यदि पॉलिसीहोल्डर के बेटे या बेटी की भी मृत्यु हो जाती है, तो पॉलिसीहोल्डर के नाती (बेटी का बेटा) और पोता (बेटे का बेटा) भी बीमा के पैसे के लिए क्लेम कर सकते हैं। यह दर्शाता है कि कानून बच्चों की अगली पीढ़ी को भी शामिल करता है।


क्लास टू लीगल वारिस (Class Two Legal Heirs): यदि क्लास वन लीगल वारिस में कोई भी जीवित नहीं है या दावा करने के योग्य नहीं है, तो फिर क्लास टू लीगल वारिस पर विचार किया जाता है। इस वर्ग में शामिल हैं:


पिता

भाई

बहन

भतीजा

भतीजी

यह पूरी प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में भी बीमा पॉलिसी का लाभ किसी न किसी योग्य व्यक्ति तक पहुंचे, भले ही मूल पॉलिसीहोल्डर और नॉमिनी दोनों ही न रहे हों। बीमा पॉलिसी लेते समय इन नियमों को समझना और परिवार के सदस्यों को इस बारे में सूचित करना महत्वपूर्ण है, ताकि भविष्य में ऐसी किसी भी जटिलता से बचा जा सके।

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