IndusInd Bank पर गहराया संकट: माइक्रोफाइनेंस लोन पोर्टफोलियो में ₹6,000-7,000 करोड़ की 'गड़बड़ी' का संदेह, CBI जांच के घेरे में!
IndusInd Bank पर गहराया संकट: माइक्रोफाइनेंस लोन पोर्टफोलियो में ₹6,000-7,000 करोड़ की 'गड़बड़ी' का संदेह, CBI जांच के घेरे में!
निजी क्षेत्र के प्रमुख बैंक, इंडसइंड बैंक (IndusInd Bank) की मुसीबतें बढ़ सकती हैं। बैंक के माइक्रोफाइनेंस लोन पोर्टफोलियो में कथित तौर पर एक बड़ी गड़बड़ी सामने आई है, जिसकी गहन जांच चल रही है। सूत्रों का कहना है कि करीब ₹6,000-7,000 करोड़ रुपये के लोन को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं। ऐसा संदेह है कि इन छोटे अमाउंट के लोन को जारी करने में तय प्रक्रिया और नियमों का सही ढंग से पालन नहीं किया गया। इन लोंस में से कुछ एग्रीकल्चर लोन हो सकते हैं, लेकिन इनका सीधा संबंध माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (MFI) से है।
बैड लोन को छुपाने की कोशिश?
सूत्रों ने बताया कि ये संदिग्ध लोन मुख्य रूप से पहले दिए गए लोंस को 'बैड लोन' (NPA - Non-Performing Asset) में कनवर्ट होने से रोकने के लिए दिए गए थे। इस मामले की जांच से जुड़े एक बैंकर ने नाम न छापने की शर्त पर मनीकंट्रोल को बताया कि जो हुआ है, वह पूरी तरह से लोन रोलओवर का मामला तो नहीं है, लेकिन उससे काफी मिलता-जुलता नजर आता है। बैंक में लोन देने की प्रक्रिया पहले से तय होती है, और कब कोई लोन बैड लोन में बदलता है, इसके पैरामीटर्स भी स्पष्ट रूप से परिभाषित होते हैं।
एग्रीकल्चर लोन के आसान नियमों का फायदा उठाने का संदेह:
इस पूरी प्रक्रिया को एक उदाहरण से समझा जा सकता है:
मान लीजिए किसी व्यक्ति को ₹60,000 का माइक्रोफाइनेंस लोन दिया जाता है। यदि इस लोन की किस्त 60 दिन या उससे ज्यादा दिनों तक नहीं चुकाई जाती है, तो ऐसी स्थिति में, बैंक लोन लेने वाले व्यक्ति की पत्नी (या पति) को ज्यादा अमाउंट का एक नया लोन इश्यू करता है। इससे पहले दिया गया MFI लोन बैंक के लिए 'बकाया' नहीं रह जाता है। इसमें यह ध्यान रखा जाता है कि बैंक ने नया लोन तब दिया जब उसने पहले दिए गए MFI लोन को 'स्मॉल-टिकट अनसेक्योर्ड लोन' की कैटगरी में डाल दिया था। सूत्रों का संदेह है कि इनमें से कुछ लोंस को 'एग्रीकल्चर लोन' की कैटेगरी में भी डाला गया हो सकता है।
इस मामले से जुड़े एक दूसरे बैंकर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "ऐसे लोन को एग्री-लोन की कैटेगरी में डालना बैंक के लिए फायदेमंद हो सकता है। इसकी वजह यह है कि एग्रीकल्चर लोन के लिए संरचित मासिक और साप्ताहिक रीपेमेंट शेड्यूल नहीं होता है। ये रीपेमेंट के लिए तभी देय होते हैं, जब साल का अंत करीब होता है।" सूत्र ने बताया कि दबाव वाले लोन से छुटकारा पाने की बैंक की इस संदिग्ध प्रैक्टिस के बारे में ऑडिट के दौरान पता चला है, और अब इस पर रोक लग गई है।
यह मामला इंडसइंड बैंक के लिए एक गंभीर चुनौती पेश कर सकता है, खासकर नियामक scrutiny के संदर्भ में। इस जांच के नतीजों का बैंक के शेयरों और उसकी प्रतिष्ठा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें