ब्रोकरों को 'टेक्निकल ग्लिच' पर राहत की उम्मीद? सेबी और एक्सचेंजों के बीच चल रही 'मुश्किल' बातचीत!

ब्रोकरों को 'टेक्निकल ग्लिच' पर राहत की उम्मीद? सेबी और एक्सचेंजों के बीच चल रही 'मुश्किल' बातचीत!



शेयर बाजार में ट्रेडिंग के दौरान आने वाली तकनीकी गड़बड़ियों (Technical Glitches) को लेकर सेबी, स्टॉक एक्सचेंज और ब्रोकर फिर से आमने-सामने हैं। ब्रोकरों को उम्मीद है कि उनके सिस्टम से जुड़ी तकनीकी खामियों के मामले में बाजार नियामक सेबी उन्हें कुछ राहत दे सकता है। मामले से जुड़े सूत्रों ने मनीकंट्रोल को इस बारे में जानकारी दी है। दरअसल, यह पूरा विवाद 28 मार्च 2025 को एक्सचेंजों द्वारा जारी एक सर्कुलर के बाद शुरू हुआ था, जिसमें कई कड़े प्रावधान लागू किए गए थे, जिनसे ब्रोकर संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने कई मसलों का समाधान न होने की शिकायत की थी।

सेबी का सख्त रुख: 'गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं'

इंडस्ट्री के एक सूत्र ने बताया, "सेबी और एक्सचेंजों ने इंडस्ट्री की तरफ से उठाए गए कुछ मसलों पर विचार करने की बात कही थी।" हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ट्रेडिंग, सेटलमेंट्स और रिस्क मैनेजमेंट में किसी भी तरह की तकनीकी गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सेबी की परिभाषा के मुताबिक, 'टेक्निकल ग्लिच' में ब्रोकर के सिस्टम में होने वाली कोई भी गड़बड़ी शामिल है, जिसमें हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, नेटवर्क, प्रोसेसेज या इलेक्ट्रॉनिक सर्विसेज में होने वाली 5 मिनट या उससे ज्यादा समय की गड़बड़ी शामिल है। यहां तक कि स्लोडाउन या सामान्य सिस्टम से विचलन (deviations) को भी टेक्निकल ग्लिच माना जाएगा।

ब्रोकर्स की मांगें और एक्सचेंजों का अड़ियल रवैया:

ब्रोकरों ने मार्च 2025 में सर्कुलर जारी होने से पहले सेबी और एक्सचेंजों को अपनी कई चिंताओं से अवगत कराया था। उनकी कुछ प्रमुख मांगें इस प्रकार थीं:

वैकल्पिक ट्रेडिंग टूल की उपलब्धता: ब्रोकर्स ने तर्क दिया था कि अगर ट्रेडिंग के वैकल्पिक टूल ऑनलाइन उपलब्ध हैं (जैसे वेब या डेस्कटॉप प्लेटफॉर्म), लेकिन केवल मोबाइल ऐप में कोई समस्या है, तो इसे 'ग्लिच' नहीं माना जाना चाहिए। हालांकि, इस अनुरोध को मार्च सर्कुलर में शामिल नहीं किया गया।

ग्लिच की अवधि में रियायत: ब्रोकर्स ने गुजारिश की थी कि जब तक 10% क्लाइंट्स या ऑर्डर्स पर असर न पड़े, तब तक तकनीकी समस्या को 'ग्लिच' नहीं माना जाना चाहिए। इस गुजारिश को भी खारिज कर दिया गया। सर्कुलर में साफ कहा गया है कि टेक्निकल ग्लिच के तहत आने वाले ऐसे मामलों में किसी तरह की रियायत नहीं दी जा सकती, चाहे क्लाइंट्स या ऑर्डर्स की संख्या कितनी भी हो। ब्रोकर्स चाहते थे कि ग्लिच को तभी माना जाए जब प्रॉब्लम 15 मिनट की हो, जबकि वर्तमान में यह सीमा 5 मिनट तय है।

थर्ड पार्टी की गड़बड़ी पर ब्रोकर की जिम्मेदारी: ब्रोकर्स ने यह भी मांग की थी कि अगर ग्लिच किसी वेंडर या थर्ड पार्टी (जैसे डेटा प्रोवाइडर, सॉफ्टवेयर प्रदाता) की वजह से होती है, तो इसके लिए ब्रोकर को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए। लेकिन, इस गुजारिश को भी नहीं माना गया। एक्सचेंज के सर्कुलर में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी तरह का ग्लिच, जो टेक्निकल ग्लिच की परिभाषा के तहत आता है, उसे ग्लिच माना जाएगा, चाहे वह किसी थर्ड पार्टी या वेंडर की वजह से ही क्यों न हो।

यह बातचीत बाजार की स्थिरता और ब्रोकरों के परिचालन चुनौतियों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है। ब्रोकर उम्मीद कर रहे हैं कि सेबी कुछ व्यावहारिक रियायतें देगा ताकि वे कड़े नियमों के बावजूद सुचारू सेवाएं प्रदान कर सकें।

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