भारतीय बॉन्ड बाज़ार से FPIs की 'उड़ान': एक हफ्ते में ₹4000 करोड़ क्यों निकाले जा रहे हैं?

भारतीय बॉन्ड बाज़ार से FPIs की 'उड़ान': एक हफ्ते में ₹4000 करोड़ क्यों निकाले जा रहे हैं?


भारतीय बॉन्ड बाज़ार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के बीच हलचल मची हुई है। सिर्फ एक हफ़्ते में, FPIs ने उन भारतीय बॉन्ड्स से ₹4,000 करोड़ से अधिक की निकासी कर ली है जो वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों का हिस्सा हैं। इस अचानक निकासी की मुख्य वजह अमेरिकी बॉन्ड्स पर बढ़ती हुई यील्ड और इसके परिणामस्वरूप भारतीय तथा अमेरिकी बॉन्ड यील्ड के बीच का अंतर 20 साल के निचले स्तर पर आ जाना है।


आम तौर पर, जब दो देशों के सरकारी बॉन्ड्स की यील्ड के बीच का अंतर कम होता है, तो विदेशी निवेशक उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से अपना पैसा निकालकर कम जोखिम वाली जगहों पर लगाना पसंद करते हैं। यह एक क्लासिक 'फ्लाइट टू सेफ्टी' (Flight to Safety) रणनीति है, जहां निवेशक अधिक स्थिर और सुरक्षित मानी जाने वाली परिसंपत्तियों की ओर रुख करते हैं।


क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (CCIL) के आंकड़ों के मुताबिक, फुली एक्सेसिबल रूट (FAR) के तहत भारतीय बॉन्ड्स में FPI का निवेश 23 मई तक ₹2.89 लाख करोड़ रहा, जबकि 16 मई को यह ₹2.94 लाख करोड़ था। FAR वह मार्ग है जिसके ज़रिए भारत से बाहर के निवेशक बिना किसी निवेश सीमा के भारत सरकार की निर्दिष्ट सिक्योरिटीज में निवेश कर सकते हैं।


क्यों कम हुआ है अंतर?

अमेरिकी और भारतीय ट्रेज़री बॉन्ड्स के बीच का अंतर ऐतिहासिक रूप से निम्न स्तर पर आने के बाद विशेषज्ञों ने बॉन्ड बाज़ार में बिकवाली को लेकर आगाह किया है। मनीकंट्रोल की 22 मई की रिपोर्ट के अनुसार, 10 साल में मैच्योर होने वाले भारतीय और अमेरिकी बॉन्ड्स के बीच का अंतर अब सिर्फ 164 बेसिस पॉइंट्स पर आ गया है, जो कि पिछले दो दशकों में सबसे कम है।


अमेरिकी बॉन्ड्स पर यील्ड में तेज़ी से बढ़ोतरी देखी गई है, जिसका एक प्रमुख कारण राजकोषीय घाटे की चिंताएं और मूडीज़ (Moody's) जैसी रेटिंग एजेंसियों द्वारा अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग में संभावित कमी है। जब अमेरिकी सरकार को अधिक उधार लेने की आवश्यकता होती है या उसकी वित्तीय स्थिति को लेकर अनिश्चितता बढ़ती है, तो वह निवेशकों को आकर्षित करने के लिए अपने बॉन्ड्स पर अधिक यील्ड की पेशकश करती है। यह बदले में अन्य विकासशील देशों के बॉन्ड बाज़ारों से पूंजी की निकासी को बढ़ावा देता है।


FPIs की यह निकासी भारतीय बॉन्ड बाज़ार के लिए एक चिंता का विषय है, खासकर ऐसे समय में जब भारत वैश्विक सूचकांकों में शामिल होने की तैयारी कर रहा है, जिससे भविष्य में बड़ी आवक की उम्मीद है। यह देखना अहम होगा कि क्या यह बिकवाली अस्थायी है या अमेरिकी यील्ड्स में जारी वृद्धि के कारण यह प्रवृत्ति बनी रहती है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

IPO से पहले Lenskart को 'सुपर-विजन': फिडेलिटी ने $6.1 अरब पर आंका वैल्यूएशन, क्या है खास?

तिलकनगर इंडस्ट्रीज का शेयर 8% उछला: कल बोर्ड मीटिंग में फंड जुटाने पर विचार, सबकी निगाहें 'इंपीरियल ब्लू' डील पर!

HDB फाइनेंशियल IPO का बिग-बैंग: ₹12,500 करोड़ का issue 25 जून को खुलेगा, पर listed प्रतिस्पर्धियों से इस मोर्चे पर दिख रही 'कमजोर सेहत'!